Famous indian urdu poets #RIPrahatindori


Dr. Rahat Indori (1950-2020)

• Urdu poet and bollywood lyricist 
• Prior, He was pedagogistof Urdu literature at Indore University.
• Passed his MA in Urdu literature from Barkatullah University Bhopal (Madhya Pradesh) in 1975. Awarded a PhD in Urdu literature from the Bhoj University of Madhya Pradesh in 1985 for his thesis titled Urdu Main Mushaira. 



अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

मेरी  ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे 
मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मी तू रख ले 

 वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है


ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के

इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते,
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

उसे अब के वफ़ाओं से गुजर जाने की जल्दी थी,
मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी,
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता,
यहाँ हर एक मौसम को गुजर जाने की जल्दी थी

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ

हम-सफ़र किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा




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Munawwar Rana (1952-Present)

• Modern Hindi and Urdu poet. 
• Born in Rae Bareli in Uttar Pradesh in 1952. 
• Munnawar Rana published his poetry not only in Urdu but also in Hindiand Bengali.
• Most of his close relatives, including his aunts and grandmother, had moved across the border to Pakistan during the Partition. But his father, out of love for India, preferred to remain here. His  family later moved to Kolkata where the young Munawwar had his schooling.
• Muhazirnama was the most famous book of Munawwar Rana.
• Most of his Shers have Mother as the centre point of his love. 
• Sahitya Akademi Award for Urdu Literature 2014. (But like many other Sahitya Akademi award   winners, he returned this award on 18 October 2015 on a live TV show, (ABP News).




चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है


मैं ने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दें
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है

भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
हब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है

घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा

मसर्रतों के ख़ज़ाने ही कम निकलते हैं
किसी भी सीने को खोलो तो ग़म निकलते हैं

ये सोच कर कि तिरा इंतिज़ार लाज़िम है
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा
उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर
ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में जाती है


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Waseem Barelvi (1940- present)

• He has been awarded with the "Firaq Gorakhpuri International Award", the Kalidas gold medal (by the Haryana government, in recognition for his services in the field of Urdu poetry);  the Begum Akhtar Kala Dharmi award;  and the Naseem-e-Urdu award
•  His ghazals and other compositions have been sung by prominent singers from Indian Film Industry.
• He had also served as Vice Chairman, National Council for Promotion of Urdu Language, Ministry of Human Resource Development, (Department of Higher Education), Govt. of India.





क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख तक भी नहीं सकता


अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
मोहब्बत के घरों के कच्चे-पन को ये कहाँ समझें
इन आँखों को तो बस आता है बरसातें बड़ी करना


तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ
हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है

आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है


फूल तो फूल हैं आँखों से घिरे रहते हैं
काँटे बे-कार हिफ़ाज़त में लगे रहते हैं

झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया

जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए

शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं
वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरों ही के लहजे में बात करता है
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता

इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे
ये अश्क कौन से ऊँचे घराने वाले थे
अपनी इस आदत पे ही इक रोज़ मारे जाएँगे
कोई दर खोले खोले हम पुकारे जाएँगे

दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता

 न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है


author - abhishekkamal



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